बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-IIसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- शाहजहाँ के चित्रों को पाश्चात्य प्रभाव ने किस प्रकार प्रभावित किया?
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. शाहजहाँ कालीन चित्रों का विषय क्या था ?
2. पाश्चात्य प्रभाव के पश्चात् इनके चित्रों में क्या अन्तर आया?
उत्तर-
जहाँगीर के समान शाहजहाँ काल में भी यूरोप से कलाकार एवं सम्मानित अधिकारी भारत में राजाओं के दरवारों में आते रहते थे। जिससे पाश्चात्य कला का प्रभाव मुगल कलाकारों पर पड़ता रहा जो मुख्य रूप से परिप्रेक्ष्य तथा छाया प्रकाश के अंकन में दिखाई देता है।
इससे आकारों में त्रि-आयामी प्रभाव उत्पन्न करने का सफल प्रयास किया गया है। तत्कालीन चित्रों में आकृतियों के पार्श्व में जो वास्तु निर्मित है उसमें काफी हद तक पाश्चात्य प्रभाव दिखाई देता है।
उसके अतिरिक्त इस काल के चित्रों में रूढ़िवादिता को भी नहीं नकारा जा सकता। दरबारी शान-शौकत के प्रस्तुतीकरण के कारण अलंकारिकता की प्रवृत्ति अधिक दिखाई देती है और विषयवस्तु के क्षेत्र में भी ऐसी घटनाओं तथा दृश्यों को चित्रित किया गया है जिसमें सम्राट के वैभव का प्रदर्शन हो सके।
इसके लिए कलाकारों ने मणियों के समान चटख रंग लगाए हैं। शाहजहाँ काल में चूंकि चित्र की अपेक्षा कलाकारों की रूचि वास्तुकला में थी अतः चित्रो की संख्या कम ही रही।
विषयों की सीमितता के कारण पशु-पक्षियों का स्वतन्त्र चित्रण भी नहीं मिलता। परन्तु शाहजहाँ द्वारा फारसी तथा हिन्दी के काव्य तथा संगीत जगत में प्रस्तुत किया जाने वाला सहयोग महत्वपूर्ण है।
सुन्दर श्रृंगार के रचयिता सुन्दरदास इनके प्रिय कवि थे। मेवाड़ शैली में इस ग्रन्थ पर तब चित्रण किया गया जब शाहजहाँ मेवाड़ के राणा के पास अतिथि रूप में गए थे। इसके अतिरिक्त चिन्तामणि, देवदत्त, जगन्नाथ आदि ने भी शाहजहाँ के साथ कार्य किया ।
जगन्नाथ ने 'रस गंगाधर' नामक ग्रन्थ की रचना की जिसकी प्रेरणा उसे एक मुस्लिम स्त्री के प्रेम से मिली। इन्होंने बहुत समय तक शाहजहाँ के दरबार में सम्मान प्राप्त किया।
अपने पूर्वजों के समान शाहजहाँ को भी शिकार का शौक था। शाहजहाँ नामा से ही सम्बन्धित एक अन्य चित्र में स्वर्ण मुद्राओं द्वारा सम्राट को तराजू पर तोला जा रहा है। शाही वस्त्रों में सुसज्जित अनेक दरबारियों का चित्रण कारपेट का आलेखन वास्तु को सज्जा स्वर्ण का प्रयोग आदि सभी भव्य वैभव को प्रस्तुत करने में सहायक है।
इस काल में खुसरू - शिरोन लैला-मजनू, रूपमति-वाज बहादुर आदि के प्रेम-प्रसंगों को भी चित्रित किया गया है। इसी संदर्भ में एक प्रमुख चित्र बाज वहादुर एण्ड रूपमति राइडिंग वाई नाइट' है जो लगभग 1650 ई० का है।
इस चित्र में सलेटी रंग से एक नदी का चित्रण है जिसके किनारे मध्यभूमि में दो घोड़ों पर अलग-अलग बाज बहादुर ओर रूपमति सुन्दर वस्त्रों तथा आभूषणों से सुसज्जित दर्शाए गए हैं। घोड़ों के नीचे का भाग छोटे-छोटे टीलों के पीछे छिपा है।
पृष्ठभूमि में वृक्षों के झुंड हैं। सम्भवतः रात्रि का दृश्य है परन्तु घोड़ों, बाज बहादुर तथा रानी रूपमति में चटख रंग योजना है क्योंकि यही चित्र का मुख्य विषय है। इसी के साथ-साथ वस्त्रों तथा आभूषणों में स्वर्ण का प्रयोग भी चित्र में अतिरिक्त चमक उत्पन्न कर रहा है।
जैसा कि यह सर्वविदित है कि मुगल सम्राटों के आश्रय (हरम) में बहुत सी स्त्रियाँ रहती थीं जो हर प्रकार से सम्राट की सेवा करती थी। प्रत्येक वर्ष सम्राट दरबार में अष्टदिवसीय मेले का आयोजन करते थे जिसमें स्त्रियों के अतिरिक्त कोई नहीं जा सकता था।
दरबार में नृत्य संगीत के आनन्दोत्सव होते थे जिनमें नर्तकियों को बहमुल्य पुरस्कार प्रदान किए जाते थे। इसके अतिरिक्त शाहजहाँ की एक प्रमुख रूचि हाथियों के युद्ध को देखने की भी थी। शाहजहाँ किसी खिड़की में तथा शाही स्त्रियाँ जालीदार झरोखों में बैठकर अखाड़े को देखती थी।
हाथियों के मध्य तीन फीट चौड़ी और छ: फीट ऊँची मिट्टी की दीवार बनायी जाती थी । हाथियों के ड्राइवर के पास लोहे का भाला होता था। दोनों हाथी एक दूसरे पर प्रहार करते, मिट्टी की दीवार टूट जाती और शक्तिशाली हाथी दूसरे हाथी को हरा देता युद्ध इतना भयावह रूप ले लेता कि अग्नि जला कर उसे शान्त किया जा। इस प्रकार के दृश्यों के कई चित्र शाहजहाँ काल में चित्रकारों द्वारा कुशलता पूर्वक आँके गए।
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